2024 के चुनावों में जीत के बाद, डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ एक नई "अस्तित्व की लड़ाई" का ऐलान कर दिया है। अपने नए कैबिनेट सदस्यों के चुनाव के जरिए, ट्रंप ने साफ कर दिया है कि अमेरिका-चीन संबंधों में बड़ा बदलाव आने वाला है। आइए देखें कि यह बदलाव कैसे ट्रंप की नीतियों को दिशा देगा और क्या इसके लिए उन्होंने अपने पास अनुभवी और कुशल चेहरों का चुनाव किया है।
2024 के चुनावों में जीत के बाद, डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ एक नई "अस्तित्व की लड़ाई" का ऐलान कर दिया है। अपने नए कैबिनेट सदस्यों के चुनाव के जरिए, ट्रंप ने साफ कर दिया है कि अमेरिका-चीन संबंधों में बड़ा बदलाव आने वाला है। आइए देखें कि यह बदलाव कैसे ट्रंप की नीतियों को दिशा देगा और क्या इसके लिए उन्होंने अपने पास अनुभवी और कुशल चेहरों का चुनाव किया है।
ट्रप का नया रणनीतिक कदम :
ट्रंप ने सीनेटर मार्को रूबियो और कांग्रेसी माइक वॉल्ट्ज को विदेश नीति में प्रमुख भूमिकाओं में रखा है, जो चीन के प्रति उनकी आक्रामक नीति को दर्शाता है। रूबियो और वॉल्ट्ज अमेरिका की परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी पर विश्वास रखते हैं, लेकिन वे मानते हैं कि चीन का विश्व में नेतृत्व के लिए लक्ष्य खतरे में डाल सकता है।
क्या कहती है रूबियो और वॉल्ट्ज की विचारधारा?
मार्को रूबियो का मानना है कि चीन सिर्फ महाशक्ति बनने का प्रयास नहीं कर रहा है, बल्कि दुनिया की पूरी संरचना को पुनः परिभाषित करने का इरादा रखता है। इस दृष्टिकोण के चलते ट्रंप का यह कदम अमेरिका की शक्ति को फिर से प्रमुख बनाने का प्रयास है। ट्रंप के अन्य प्रमुख साथी माइक हकाबी और माइक वॉल्ट्ज भी इस रणनीति के समर्थक हैं, जो यह बताता है कि आने वाले दिनों में चीन के साथ अमेरिका का टकराव और बढ़ सकता है।
बाइडन प्रशासन से कितना अलग है यह दृष्टिकोण?
बाइडन प्रशासन ने भी चीन को सबसे बड़े प्रतिद्वंदी के रूप में माना था, लेकिन उनकी रणनीति संवाद पर आधारित थी। जबकि ट्रंप और उनके सहयोगी सीधे तौर पर चीन के खिलाफ आक्रामक नीति अपनाने के पक्षधर हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन भी इस बदलाव को चुनौती के रूप में देखेगा और यह अमेरिका-चीन संबंधों में एक नया अध्याय खोल सकता है।
ट्रंप की 'डीलमेकिंग' की ताकत
ट्रंप ने हमेशा खुद को एक सौदेबाजी करने वाले नेता के रूप में पेश किया है, और यह नीति चीन के साथ बातचीत में भी देखने को मिल सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप किसी भी नीति को तभी अपनाएंगे, जब इससे उनके "डीलमेकिंग" का उद्देश्य पूरा हो सके। इस दृष्टिकोण से, वे रूबियो या वॉल्ट्ज की सलाह को भी नजरअंदाज कर सकते हैं, यदि उन्हें लगे कि वे बेहतर डील कर सकते हैं।
ट्रंप का यह निर्णय न केवल चीन के साथ अमेरिका के रिश्तों को फिर से परिभाषित करने की तैयारी है, बल्कि यह उनके "डीलमेकिंग" दृष्टिकोण का भी विस्तार है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप और उनकी टीम कैसे इस अस्तित्व की लड़ाई को दिशा देते हैं और क्या इससे वैश्विक राजनीति में नया मोड़ आएगा।
अपने विचार हमारे साथ शेयर करें कि क्या ट्रंप का यह कदम अमेरिका के लिए फायदे का सौदा साबित होगा या वैश्विक शांति को चुनौती दे सकता है।

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